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तीसरा अङ्क

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होते लेकिन उनपर दावा नहीं करने दिया।

ज्ञानी--वह तो मुझसे कहते थे दो चार महीनोंके लिये पहाड़ों की सैर करने जाऊंगा। डाक्टरने कहा है यहाँ रहोगे तो तुम्हारा स्वास्थ्य बिगड़ जायगा। आजकल कुछ दुर्बल भी तो हो गये हैं। बाबुजी एक बात पूछूं बताओगे? तुम्हें भी इनके स्वभावमें कुछ अन्तर दिखाई देता है? मुझे तो बहुत अन्तर मालूम होता है। वह कभी इतने नम्र और सरल नहीं थे। अब वह एक-एक बात सावधान होकर कहते हैं कि कहीं मुझे बुरा न लगे। उनके सामने जाती हूँ तो मुझे देखते ही मानों नींदसे चौंक पड़ते हैं और इस भांति हंस कर स्वागत करते हैं जैसे कोई मेहमान आया हो। मेरा मुंह जोहा करते हैं कि कोई बात कहे और उसे पूरी कर दूँ। जैसे घरके लोग बीमारका मन रखनेका यत्न करते हैं या जैसे किसी शोक-पीड़ित मनुष्यके साथ लोगोंका व्यवहार सदय हो जाता है। उसी प्रकार आजकल पके हुए फोड़ेकी तरह मुझे ठेससे बचाया जाता है। इसका रहस्य कुछ मेरी समझमें नहीं आता। खेद तो मुझे यह है कि इन सारी बातोंमें दिखाव और बनावटकी बू आती है। सच्चा क्रोध उतना हृदय भेदी नहीं होता जितना कृत्रिम प्रेम।

कंचन--(मनमें) वही बात है। किसी बच्चेसे हम अशर्फी ले लेते हैं कि खो न दे तो उसे मिठाइयोंसे फुसला देते हैं। भाई