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तीसरा अङ्क

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उसके रङ्ग-ढ़ङ्ग देखूं, कौन है, क्या चाहती है, क्यों यह जाल फैलाया है। अगर धनके लोभसे यह माया रची है तो जो कुछ उसकी इच्छा हो देकर यहाँसे हटा दूँ। भाई साइबको और समस्त परिवारको सर्वनाशसे बचा लूँ।

(फिर खिदमतगार आता है)

क्या बार बार आते हो? क्या काम है? मेरे पास पेशगी देनेके लिये रुपये नहीं हैं।

खिद०—हजूर रुपये नहीं माँगता। बड़े सरकारने आपको याद किया है।

कंचन—(मनमें) मेरा तो दिल धक धक कर रहा है, न जाने क्यों बुलावे हैं कहीं पूछ न बैठें तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हुए हो।

( उठकर ठाकुर सबल सिहके कमरे में जाते हैं।)

सबल—तुमको एक विशेष कारणसे तकलीफ़ दी है। इधर कुछ दिनोंसे मेरी तबीयत अच्छी नहीं रहती, रातको नींद कम आती है और भोजनसे भी अरुचि हो गई है।

कंचन—आपका भोजन आधा भी नहीं रहा।

सबल—हां वह भी जबरदस्ती खाता हूँ। इसलिये मेरा विचार हो रहा है कि तीन चार महीनोंके लिये मंसूरी चला जाऊं।