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संग्राम

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सबल—बेटा, मैं अकेले जा रहा हूँ, तुम्हें तकलीफ होगी।

अचल—इसीलिये तो मैं और चलना चाहता हूँ। मैं चाहता हूं कि खूब तकलीफ हो, सब काम अपने हाथों करना पड़े, मोटा खाना मिले और कभी मिले कभी न मिले। तकलीफ उठानेसे आदमीकी हिम्मत मजबूत हो जाती है, वह निर्भय हो जाता है, जरा-जरा सी बातोंसे घबराता नहीं। मुझे जरूर ले चलिये।

सबल—मैं वहाँ एक जगह थोड़े ही रहूँगा। कभी यहाँ, कभी वहां।

अचल—यह तो और भी अच्छा है। तरह तरहकी चीजें, नये नये दृश्य देखने में आयेंगे। भौर मुल्कोंमें तो लड़कोंको सरकारकी तरफसे सैर करनेका मौका दिया जाता है। किताबोंमें भी लिखा है कि बिना देशाटन किये अनुभव नहीं होता, और भूगोल जाननेका तो इसके सिवा कोई अन्य उपाय नहीं है। नक़शों और माडलोंके देखनेसे क्या होता है। मैं इस मौक़ेको न जाने दूंगा।

सबल—बेटा, तुम कभी २ व्यर्थमें ज़िद करने लगते हो। मैंने कह दिया कि मैं इस वक्त अकेले ही जाना चाहता हूँ, यहां तक कि किसी नौकरको भी साथ नहीं ले जाता। अगले वर्षमें तुम्हें इतनी सैरें करा दूँगा कि तुम ऊब जावोगे।