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तीसरा अङ्क

१३९

(अचल उदास होकर चला जाता है।)

अब सफ़रकी तैयारी करूं। मुखतसर ही सामान ले जाना मुनासिब होगा। रुपये हों तो जंगलमें भी मंगल हो सकता है। आज शामको राजेश्वरीसे भी चलनेकी तैयारी करनेको कह दूंगा, प्रातःकाल हम दोनों यहांसे चले जायँ। प्रेमपाशमें फंसकर देखूं, नीतिका, आत्माका, धर्मका कितना बलिदान करना पड़ता है, और किस-किस बनकी पत्तियां तोड़नी पड़ती हैं।