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(स्थान—राजेश्वरीका सजा हुआ कमरा, समय—दोपहर ।)
लौंडी—बाई जी, कोई नीचे पुकार रहा है।
राजेश्वरी—(नींदसे चौंककर) क्या कहा आग लगी है?
लौंडी—नौज; कोई आदमी नीचे पुकार रहा है।
राजे०—पूछा नहीं कौन है, क्या कहता है, किस मतलबसे आया है। संदेसा लेकर दौड़ चली, कैसे मज़ेका सपना देख रही थी।
लौंडी—ठाकुर साहबने तो कह दिया है कि कोई कितना ही पुकारे, कोई हो, किवाड़ न खोलना, न कुछ जवाब देना। इसीलिये मैंने कुछ पूछपाछ नहीं की।
राजे०—मैं कहती हूँ जाकर पूछो कौन हो?
(महरी जाती है और एक क्षण में लौट आती है।)
लौंडी—अरे बाईजी बड़ा गजब हो गया। यह तो ठाकुर साहबके छोटे भाई बाबू कंचनसिंह हैं। अब क्या होगा?
राजे०—होगा क्या, जाकर बुला ला।