पृष्ठ:संग्राम.pdf/१६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तीसरा अङ्क

१४५

सकता है, उसके लिये और सभी बातें सहज हो जाती हैं।

कंचन—मैं इसके सिवा और कुछ न कहूँगा कि आप यहाँसे न जायें।

राजे०—(कंचनकी ओर तिर्छी चितवनसे ताकते हुए) यह आपकी इच्छा है?

कंचन—हाँ यह मेरी प्रार्थना है। (मनमें) दिल नहीं मानता, कहीं मुँहसे कोई बात निकल न पड़े।

राजे०—चाहे वह रूठ ही जायँ?

कंचन—नहीं, अपने कौशलसे उन्हें राजी कर लो।

राजे०—(मुसकिराकर) मुझमें यह गुण नहीं है।

कंचन—रमणियों में यह गुण बिल्ली के नखोंकी भांति छिपा रहता है। जब चाहें उसे काममें ला सकती हैं।

राजे०—उनसे आपके आनेकी चरचा तो करनी ही होगी।

कंचन—नहीं, हरगिज नहीं। मैं तुम्हें ईश्वरकी कसम दिलाता हूं भूलकर भी उनसे यह जिक्र न करना, नहीं तो मैं जहर खा लूंगा, फिर तुम्हें मुँह न दिखाऊँगा।

राजे०—(हंसकर) ऐसी धमकियोंका तो प्रेम-बार्ता में कुछ अर्थ नहीं होता, लेकिन मैं भापको उन आदमियोंमें नहीं समझती। मैं आपसे कहना नहीं चाहती थी पर बात पढ़नेपर कहना ही पड़ा कि मैं आपके सरल स्वभाव और आपके निष्क-