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तीसरा दृश्य
(स्थान—सबलसिंह का घर, सबलसिंह बगीचे में हौज़के किनारे
मसहरीके अन्दर लेटे हुए हैं। समय—११ बजे रात।)

सबल (आपही आप) आज मुझे इसके बर्ताव और बातोंमें कुछ रूखाईसी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने बहुत विचारसे देखा। मैं घण्टेभरतक बैठा, चलने के लिये जोर देता रहा पर उसने एक बार नहीं करके फिर हां न की। मेरी तरफ एकबार भी उन प्रेमकी चितवनोंसे नहीं देखा जो मुझे मस्त कर देती हैं। कुछ गुम सुम सी बैठी रही। कितना कहा कि तुम्हारे न चलनेसे घोर अनर्थ होगा, यात्राकी सब तैयारियां कर चुका हूं, लोग मनमें क्या कहेंगे कि पहाड़ोंकी सैरका इतना ताव था, और इतना जल्द ठंढा हो गया, लेकिन मेरी सारी अनुनय विनय एक तरफ और उसकी एक 'नहीं' एक तरफ। इसका कारण क्या है? किसीने बहका तो नहीं दिया। हां, एक बात याद आई। उसके इस कथनका क्या आशय हो सकता है कि हम चाहे जहां जायं टोहियों और गोयन्दोंसे बच न सकेंगे। क्या