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संग्राम

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यहां टोहिये आगये। इसमें कंचनकी कुछ कारस्तानी मालूम होती है। टोहियेपन की आदत उन्होंमें है। उनका उस दिन उचक्कोंकी भांति इधर-उधर, अपर नीचे ताकते जाना निरर्थक नहीं था। इन्होंने कल मुझे रोकनेकी कितनी चेष्टा की थी। ज्ञानीकी निगाह भी कुछ बदली हुई देखता हूँ। यह सारी श्राग कंचनकी लगाई हुई है। तो क्या कंचन वहां गया था? राजेश्वरीके सम्मुख जानेकी इसे क्योंकर हिम्मत हुई। किसी महफ़िलमें तो आज तक गया नहीं। बचपनहीसे औरतोंको देखकर में झेंपता है। वहां कैसे गया। जाने क्योंकर पाया। मैंने तो राजेश्वरीसे सख्त ताकीद कर दी थी कि कोई भी यहां न आने पाये। हमने मेरी ताकीदकी कुछ परवा न की। दोनों नौकरानियां भी मिल गईं। यहां तक कि राजेश्वरीने इनके जानेकी कुछ चर्चा ही नहीं की। मुझसे बात छिपाई, पेट रखा। ईश्वर, मुझे यह किन पापों का दंड मिल रहा है।

अगर कंचन मेरे रास्तेमें पड़ते हैं, तो पड़ें पर परिणाम बुरा होगा। अत्यन्त भीषण। मैं जितना ही नर्म हूँ उतना ही कठोर भी हो सकता हूँ। मैं आजसे ताकमें हूं। अगर निश्चय हो गया कि इसमें कंचनका कुछ हाथ है तो मैं उसके खूनका प्यासा हो जाऊँगा। मैंने कभी उसे कड़ी निगाहसे नहीं देखा। पर उसकी इतनी जुर्अत! अभी यह खून बिलकुल ठंढा नहीं हुआ है, उस