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संग्राम

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अच्छी नहीं, अकेले जाने कहते हो। परदेसवाली बात है, न जाने कैसी पड़े कैसी न पड़े। इससे तो यही अच्छा था कि यही इलाज करवाते।

सबल—(क्यों न इसे खुश कर दूँ जब जरा सा बात फेर देनेसे काम निकल सकता है) इस जरा सी बातके लिये इतनी चिन्ता करनेकी क्या जरूरत?

ज्ञानी—तुम्हारे लिये जरा सी हो पर मुझे तो असूझ मालूम होती है।

सबल—अच्छा तो लो, न जाऊँगा।

ज्ञानी—मेरी कसम?

सबल—सत्य कहता हूं। जब इससे तुम्हें इतना कष्टहो रहा है तो न जाऊँगा।

ज्ञानी—मैं इस अनुग्रहको भी न भूलूंगी। आपने मुझे उबार लिया नहीं तो न जाने मेरी क्या दशा होती। अब मुझे कुछ दंड भी दीजिये। मैंने आपकी आज्ञाका उल्लंघन किया है और उसका कठिन दंड चाहती हूँ।

सबल—मुझे तुमसे इसकी शंका ही नहीं हो सकती।

ज्ञानी—पर वह अपराध इतना बड़ा है कि आप उसे क्षमा नहीं कर सकते।

सबल—(कुतूहलसे) क्या बात है, सुनूं?