पृष्ठ:संग्राम.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तीसरा अङ्क

१५७

मचाते हो?

हलधर—तुम भी निरे गंवार हो। चीलके घोंसलेमें माँस ढूंढ़ते हो।

पहला—यारो संभलकर, पालकी आ रही है।

चौथा—बस ठूट पड़ो जिसमें कहार भाग खड़े हों।

(ज्ञानीकी पालकी आती है। चारों डाकू तलवारें लिये कहारोंपर

जा पड़ते हैं। कहार पालकी पटककर भाग खड़े होते

हैं। गुलाबी बरगदकी आड़में छिप जाती है।)

एक डाकू—ठकुराइन, जानकी खैर चाहती हो तो सब गहने चुपकेसे उतारके रख दो। अगर गुल मचाया या चिल्लाई तो हमें जबरदस्ती तुम्हारा मुँह बन्द करना पड़ेगा, और हम तुम्हारे ऊपर हाथ नहीं उठाना चाहते।

दूसरा—सोचती क्या हो, यहाँ ठाकुर सबलसिंह नहीं बैठे हैं जो बन्दुक लिये आते हो। चटपट उतारो।

तीसरा—(पालकीका परदा उठाकर) यह यों न मानोगी ठकुराइन है न, हाथ पकड़कर बाँध दो, उतार लो सब गहने।

(हलधर लपककर उस डाकूपर लाठी चलाता है और

वह हाय मारकर बेहोश हो जाता है। तीनों
बाकी डाकू उसपर टूट पड़ते हैं। लाठियाँ
चलने लगती हैं।)