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तीसरा अङ्क

१५९

यह सब मत होने देना।

(नदीकी ओर चला जाता है। गाता हैं)

दूजी सखी बोली सुनो सखियो मेरा पिया जुआरी है।
रात २ भर फड़पर रहता, बिगड़ी दसा हमारी है।
घर और बार दांवपर हारा अब चोरीकी बारी है।
गहने कपड़ेको क्या रोऊँ पेटकी रोटी भारी है।
कौड़ी ओढ़ना कौड़ी बिछौना कौड़ी सौत हमारी है।

ज्ञानी—(गुलाबीसे) आज भगवानने बचा लिया नहीं तो गहने भी जाते और जानकी भी कुशल न थी।

गुलाबी—यह जरूर कोई देवता है, नहीं तो दूसरोंके पीछे कौन अपनी जान जोखिममें डालता है।

(पटाक्षेप)