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तीसरा अङ्क

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फत्तू—उनमें और चाहे कोई बुराई हो पर असामियोंपर हमेसा परबरसकी निगाह रखते हैं।

चेतनदास—यही तो उसकी चतुराई है कि अपना स्वार्थ भी सिद्ध कर लेता है और अपकीति भी नहीं होने देता। रुपये से,मीठे वचनसे, नम्रतासे लोगोंको वशीभूत कर लेता है।

मंगरू—महाराज आप उनका स्वभाव नहीं जानते जभी ऐसा कहते हैं। हम तो उन्हें सदासे देखते आते हैं। कभी ऐसी नीयत नहीं देखी कि किसीसे एक पैसा बेसी ले लें। कभी किसी तरहकी बेगार नहीं ली, और निगाहका तो ऐसा साफ आदमी कहीं देखा ही नहीं।

हरदास—कभी किसीपर निगाह नहीं डाली।

चेतनदास—भली प्रकार सोचो अभी हालहीमें कोई स्त्री यहाँसे निकल गई है।

फत्तू—(उत्सुक होकर) हाँ महाराज, अभी थोड़े ही दिन हुए।

चेतन—उसके पतिका भी पता नहीं है?

फत्तू—हाँ महाराज वह भी गायब है।

चेतन—स्त्री परम सुन्दरी है?

फत्तू—हां महाराज, रानी मालूम होती है।

चेतन—उसे सबलसिंहने घर डाल लिया है।

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