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फत्तू—घर डाल लिया है?
मंगरू—झूठ है।
हरदास—विश्वास नहीं आता।
फत्तू—और हलधर कहाँ है?
चेतन—इधर उधर मारा मारा फिरता है। डकैती करने लगा है। मैंने उसे बहुत खोजा पर भेंट नहीं हुई।
(सलोनी गाती हुई आती है।)
मुझे जोगिन बनाके कहाँ गये रे जोगिया।
फत्तू—सलोनी काकी इधर आओ। राजेश्वरी तो सबलसिंहके घर बैठ गई।
सलोनी—चल झूठे, विचारीको बदनाम करता है।
मँगरू—ठाकुर साहबमें यह लत है ही नहीं।
सलोनी—मरदोंकी मैं नहीं चलाती, न इनके सुभावका कुछ पता मिलता है, पर कोई भरी गङ्गामें राजेश्वरीको कलंक लगाये तो भी मुझे विश्वास न आयेगा। वह ऐसी औरत नहीं।
फत्तू—विश्वास तो मुझे भी नहीं आता पर यह बाबाजी कह रहे हैं।
सलोनी—आपने आंखों देखा है।
चेतन—नित्य ही देखता हूँ। हाँ कोई दूसरा देखना चाहे