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पहला अङ्क


जानेका है। तुम भी चलो तो अच्छा। एक अच्छी भैंस लाना। गुड़के रुपये तो अभी रखे होंगे न?

हलधर––कहाँ दादा, वह सब तो कन्चनसिंह को दे दिये। बीघे भर भी तो न थी, कमाई भी अच्छी न हुई थी, नहीं तो क्या इतनी जल्द पेल-पालकर छुट्टी पा जाता?

फत्तू––महाजनसे तो कभी गला ही नहीं छूटता।

हलधर––दो साल भी तो लगातार खेती नहीं जमती, गला कैसे छूटे!

फत्तू––वह धोड़ेपर कौन आ रहा है? कोई अफसर है क्या?

हलधर––नहीं, ठाकुर साहब तो हैं। घोड़ा नहीं पहचानते। ऐसे सच्चे पानीका घोड़ा इधर दस-पांच कोस तक नहीं है।

फत्तू––सुना एक हजार दाम लगते थे पर नहीं दिया।

हलधर––अच्छा जानवर बड़े भागोंसे मिलता है। कोई कहता था अबकी घुड़-दौड़में बाजी जीत गया। बड़ी-बड़ी दूरसे घोड़े आये थे पर कोई इसके सामने न ठहरा। कैसा शेरकी तरह गरदन उठाके चलता है।

फत्तू––ऐसे सरदारको ऐसा ही घोड़ा चाहिये। आदमी हो तो ऐसा हो। अल्लाहने इतना कुछ दिया है पर घमण्ड छूतक नहीं गया। एक बच्चा भी जाय तो उससे प्यारसे बातें करते हैं। अबकी ताऊनके दिनों में इन्होंने दौड़-धूप न को होती तो