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तीसरा अङ्क

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खड़े खड़े भस्म हो जायं।

सलोनी—जा चिल्लू भर पानीमें डूब मर कायर कहींका। हलधर तेरे सगे चाचाका बेटा है। जब तू उसका नहीं तो और किसका होगा। मुंहमें कालिख नहीं लगा लेता ऊपरसे बातें बनाता है। तुझे तो चूड़ियां पहनकर घरमें बैठना चाहिये था। मर्द वह होते हैं, जो अपनी आनपर जान दे देते हैं। तू हिजड़ा है। अब जो फिर मुंह खोला तो लुका लगा दूँगी।

मंगरू—सुनते हो फत्तू काका इनकी बातें। जमींदारसे बैर बढ़ाना इनके समझमें दिल्लगी है। हम पुलिसवालोंसे चाहे न डरें, अमलोंसे चाहे न डरें, महाजनसे चाहे बिगाड़ कर लें, पटवारीसे चाहे कहा-सुनी हो जाय, पर जमींदारसे मुंह लगना अपने लिये गढ़ा खोदना है। महाजन एक नहीं हजारों हैं, अमले आते-जाते रहते हैं, बहुत करेंगे सता लेंगे, लेकिन जमींदारसे तो हमारा जन्म-मरनका व्यवहार है। उसके हाथमें तो हमारी रोटियां हैं। उससे ऐंठकर कहां जायँगे? न काकी, तुम चाहे गालियां दो, चाहे ताने मारो पर सबलसिंहसे हम लड़ाई नहीं ठान सकते।

चेतनदास—(मनमें) मनोनीत आशा न पूरी हुई। हलधरके कुटुम्बियों में ऐसा कोई न निकला जो आवेगमें आकर अपमान का बदला लेने को तैयार हो जाता। सबके सब कायर