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सबल—(उन्मत्त होकर) पाखडी कहींका, धर्मात्मा बनता है, विरक्त बनता है, और कर्म ऐसे नीच! तु मेरा भाई सही पर तेरा वध करनेमें कोई पाप नहीं है। हां, इस राक्षसको हत्या मेरे ही हाथों होगी। ओह! कितनी नीच प्रकृति है, मेरा सगा भाई और यह व्यवहार! असह्य है अक्षम्य है, ऐसे पापीके लिये नर्क ही सबसे उत्तम स्थान है। आज ही, इसी रातको तेरी जीवन-लीला समाप्त हो जायगी। तेरा दीपक बुझ जायगा। हा धूर्त, क्या तेरी कामलोलुपताके लिये यही एक ठिकाना था! तुझे मेरे ही घरमें आग लगानी थी! मैं तुझे पुत्रवत् प्यार करता था। तुझे.........(क्रोधसे ओठ चबाकर) तेरी लाशको इन्हीं आंखोंसे तड़पते हुए देखूंगा।

(नीचे चला जाता है)

राजे०—(आपही आप) ऐसा जान पड़ता है भगवान स्वयं यह सारी लीला कर रहे हैं, उन्हींकी प्रेरणासे सब कुछ होता हुआ मालूम होता है। कैसा विचित्र रहस्य है। मैं बैलोंका मारा जाना नहीं देख सकती थी, चिंउटियोंको पैरों तले पड़ते देख- कर मैं पाँव हटा लिया करती थी। पर अभाग्य मुझसे यह हत्याकाण्ड करा रहा है! मेरेही निर्दय हाथोंके इशारेसे यह कठपुतलियां नाच रही हैं!(करुण स्वरों में गाती है)

ऊधो कर्मनकी गति न्यारी। (गाते गाते प्रस्थान)