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तीसरा अङ्क

१७९

(हलधर लपककर कंचनसिहके कमरेकी ओर चलता है।)

सबल—ठहरो ठहरो, यों नहीं। सम्भव है तुम्हारा आहट पाकर जाग उठे। नौकर सिपाही उसका चिल्लाना सुनकर जाग पड़ें। प्रातःकाल वह गंगा नहाने जाता है। उस वक्त अन्धेरा रहता है। वहीं तुम उसे गङ्गाकी भेंट कर सकते हो। घात लगाये रहो। अवसर आतेही एक हाथमें काम तमाम कर दो और लाशको वहीं बहा दो। तुम्हारा मनोरथ पूरा होने का इससे सुगम उपाय नहीं है।

हलधर—(कुछ सोचकर) मुझे धोखा तो नहीं देना चाहते। इस बहानेसे मुझे टाल दो और फिर सचेत हो जाओ और मुझे पकड़वा देनेका इन्तजान करो।

सबल—मैंने ईश्वरकी कसम खाई है, अगर अब भी तुम्हें विश्वास न आये तो जो चाहे करो।

हलधर—अच्छी बात है जैसा आप कहते हैं वैसाही होगा। अगर इस समय धोखा देकर बच भी गये तो फिर क्या कभी दाव ही न आयेगा। मेरे हाथोंसे बचकर अब नहीं जा सकते। मैं चाहूँ तो एक क्षण में तुम्हारे कुल का नाश कर दूं पर मैं हत्यारा नहीं हूँ, मुझे धनकी लालसा नहीं है। मैं तो केवल अपने अपमानका बदला लेना चाहता हूं। आपको भी सचेत किये देता हूँ। मैं अभी और टोह लगाऊँगा। अगर पता चला कि