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आठवां दृश्य
(स्थान—नदीका किनारा, समय—४ बजे भोर, कंचन

पूजाकी सामग्री लिये आता है और एक
तख्तपर बैठ जाता है, फीटन घाटके

ऊपर ही रुक जाती है)

कंचन (मनमें) यह जीवनका अंत है! यह बड़े २ इरादों और मंसूबोंका परिणाम है! इसीलिये जन्म लिया था। यही मोक्षपद है। यह निर्वाण है। माया बन्धनोंसे मुक्त रहकर आत्माको उच्चतम पदपर ले जाना चाहता था। यह वही महानपद है। यही मेरी सुकीर्ति रूपी धर्मशाला है, यही मेरा आदर्श कृष्ण-मन्दिर है! इतने दिनोंके नियम और सयम, सत्संग और भक्ति, दान और व्रतने अन्तमें मुझे वहां पहुँचाया जहाँ कदाचित् भ्रष्टाचार और कुविचार, पाप और कुकर्मने भी न पहुँचाया होता। मैंने जीवनयात्राका कठिनतम मार्ग लिया पर हिन्सक जीव-जन्तुओंसे बचनेका, अथाह नदियोंको पार करनेका, दुर्गम घाटियोंसे उतरनेका कोई साधन अपने