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पहला अङ्क


यहां अभी किसी अफसरका दौरा तो नहीं हुआ?

फत्तू––नहीं सरकार, अभीतक तो कोई नहीं आया।

सबल––और न शायद आयेगा। लेकिन कोई आ भी जाय तो याद रखना, गांव से किसी तरहकी बेगार न मिले। साफ कह देना बिना जमींदार के हुक्मके हमलोग कुछ नहीं दे सकते। मुझसे जब कोई पूछेगा तो देख लूंगा। (मुस्कुराकर) हलधर! क्या गौना लाये हो? हमारे घर बैना नहीं भेजा?

हलधर––हजूर मैं किस लायक हूँ।

सबल––यह सो तुम सब कहते जब मैं तुमसे मोतीचूरके लड्डू या घीके खाजे मांगता। प्रेमसे शीरे और सत्तके लड्डू भेज देते तो मैं उसीको धन्य भाग कहता। यह न समझो कि हम लोग सदा घी और मैदे खाया करते हैं। मुझे बाजरेकी रोटियाँ और तिल के लड्डू और मटरका चबैना कभी-कभी हलवे और मुरब्बेसे भी अच्छे लगते हैं। एक दिन मेरी दावत करो, मैं तुम्हारी नई दुलहिनके हाथका बनाया हुआ भोजन करना चाहता हूँ। देखें यह मैकेसे क्या गुन सीखकर आई है। मगर खाना बिलकुल किसानोंकासा हो। अमीरोंका खाना बनवानेकी फिक्र मत करना।

हलधर––हमलोगोंके लिट्ट सरकारको पसन्द आयेंगे?

सबल––हाँ, बहुत पसन्द आयेंगे।