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तीसरा अङ्क

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बड़ा सौभाग्य था कि आज प्रातःकाल आपके दर्शन हो गये। आप तीर्थयात्रापर कब जाने का विचार कर रहे हैं?

चेतन—बाबा अब तक तो चला गया होता पर भगतोंसे पिण्ड नहीं छूटता। विशेषतः मुझे तुम्हारे कल्याणके लिये तुमसे कुछ कहना था और बिना कहे मैं न जा सकता था। यहां इसी उद्देश्यमे आया हूँ। तुम्हारे ऊपर एक घोर संकट आनेवाला है। तुम्हारा भाई सबलसिह तुम्हें वध करनेकी चेष्टाकर रहा है। घातक शीघ्रही तुम्हारे ऊपर आघात करेगा। सचेत हो जाओ।

कंचन—महाराज, मुझे अपने भाईसे ऐसी आशङ्का नहीं है।

चेतन—यह तुम्हारा भ्रम है। प्रेम ईर्षा में मनुष्य अस्थिरचित्त, उन्मत्त हो जाता है।

कंचन—यदि ऐसाही हो तो मैं क्या कर सकता हूँ। मेरी आत्मा तो स्वयं अपने पापके बोझसे दबी हुई है।

चेतन—यह क्षत्रियोंकी बातें नहीं हैं। भूमि, धन, और नारीके लिये संग्राम करना क्षत्रियोंका धर्म है। इन वस्तुओंपर उसीका वास्तविक अधिकार है जो अपने बाहुबलसे उन्हें छीन सके। इस संग्राममें दया और धर्म, विवेक और विचार, मान और प्रतिष्ठा, सभी कायरताके पर्याय हैं। यही उपदेश कृष्ण भगवानने अर्जुनको दिया था, और वही उपदेश मैं तुम्हें दे रहा