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संग्राम

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हाय, अभी एक क्षणमें यह घटना सारे नगरमें फैल जायगी। लोग समझेंगे पांव फिसल गया होगा,राजेश्वरी क्या समझेगी? उसे मुझसे प्रेम है, अवश्य शोक करेगी, रोयेगी और अबसे कहीं ज्यादा प्रेम करने लगेगी। और भैया? हाय यही तो मुसीबत है। अब मैं उन्हें मुँह नहीं दिखा सकता। मैं उनका अपराधी हूँ। मैंने धर्मकी हत्याकी है। अगर वह मुझे जीता चुनवा दें तोभी मुझे आह भरनेका अधिकार नहीं है। मेरे लिये अब यही एक मार्ग रह गया है। मेरे बलिदानसे ही अब शान्ति होगी। पर भैयापर मेरे हाथ न उठेंगे। पानी गहरा है। भगवन् मैंने बड़े पाप किये हैं, तुम्हें मुँह देखाने योग्य नहीं हूँ। अपनी अपार दया की छांहमें मुझे भी शरण देना। राजेश्वरी, अब तुझे कैसे देखूंगा।

(पीलपायेपर खड़ा होकर अथाह जलमें कूद पड़ता है)
(हलधरका तलवार और पिस्तौल लिये आना)

हलधर—बड़े मौकेसे आया। मैंने समझा था देर हो गई। पाखंडी, कुकर्मी कहींका। रोज गङ्गा नहाने आता है, पूजा करता है, तिलक लगाता है और कर्म इतने नीच। ऐसे मौकेसे मिले हो कि एकही बारमें काम तमाम कर दूँगा। और पराई स्त्रियों पर निगाह डालो। (पिलपायेकी आड़में छिपकर सुनता है पापी भगवानसे दयाकी याचना कर रहा है। यह नहीं जानता है