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तीसरा अङ्क

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कि एक क्षणमें नर्कके द्वारपर खड़ा होगा। राजेश्वरी, अब तुम्हें कैसे देखूंगा? अभी प्रेत हुए जाते हो फिर उसे जी भरकर देखना। (पिस्तौलका निशाना लगाता है) अरे! यह तो आपही आप पानीमें कूद पड़ा, क्या प्राण देना चाहता है?

(पिस्तौल किनारेकी ओर फेंककर पानी में कूद पड़ता है और
कंचन सिहको गोंदमें लिये एक क्षण में बाहर आता है।)

(मनमें) अभी पानी पेटमें बहुत कम गया है। इसे कैसे होशमें लाऊँ। है तो यह अपना बैरी,पर जब आप ही मरनेपर उतारू है तो मैं इसपर क्या हाथ उठाऊँ। मुझे तो इसपर दया आती है।

(कंचन सिहको लेटाकर उसकी पीठमें घुटने लगाकर

उसके बाहोंको हिलाता है)

(चेतनदासका प्रवेश)

चेतनदास—(आश्चर्यसे) यह क्या दुर्घटना हो गई। क्या तूने इसको पानीमें डुबा दिया?

हलघर—नहीं महाराज, यह तो आप नदीमें कूद पड़े। मैं तो बाहर निकाल लाया हूँ।

चेतन—लेकिन तू इन्हें वध करनेका इरादा करके आया था। मुर्ख मैंने तुझे पहले ही जता दिया था कि तेरा शत्रु सबल सिंह है, कंचनसिंह नहीं, पर तूने मेरी बातका विश्वास न किया। उस धूर्त सबलके बहकावेमें आ गया। अब फिर कहता