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संग्राम

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हूँ कि तेरा शत्रु वही है, उसीने तेरा सर्वनाश किया है, वही राजेश्वरीके साथ विलास करता है।

हलधर—मैंने इन्हें राजेश्वरीका नाम लेते अपने कानोंसे सुना है।

चेतन—हो सकता है कि राजेश्वरी जैसी सुन्दरीको देखकर इसका चित्त भी चंचल हो गया हो। सबलसिंहने सन्देह वश इनके प्राण-हरणकी चेष्टाकी हो। बस यही बात है।

हलधर—स्वामीजी क्षमा कीजियेगा, मैं सबलसिंहकी बातों में आ गया। अब मुझे मालूम हो गया कि वही मेरा बैरी है। ईश्वरने चाहा तो वह भी बहुत दिनतक अपने पापका सुख न भोगने पायेंगे।

चेतन—(मनमें) अब कहाँ जाता है। आज पुलिसवाले भी घरकी तलाशी लेंगे। अगर उनसे बच गया तो यह तो तलवार निकाले बैठा ही है। ईश्वरकी इच्छा हुई तो अब शीघ्रही मनोरथ पूरे होंगे। ज्ञानी मेरी होगी और मैं इस विपुल सम्पत्ति का स्वामी हो जाऊंगा। कोई व्यवसाय, कोई विद्या, मुझे इतनी जल्द इतना सम्पत्तिशाली न बना सकती थी?

(प्रस्थान)

कंचन—(होशमें आकर) नहीं तुम्हारा शत्रु मैं हूँ। जो कुछ किया है मैंने किया है। भैया निर्दोष हैं, तुम्हारा अपराधी मैं