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संग्राम

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हलधर—हाँ असरफियोंकी थैली है। मुँह धो रखना।

तीसरा—यह बहुत कड़ा ब्याज लेता है। सब रुपये इसके तोनमेंसे निकाल लो।

हलधर—जबान संभालकर बात करो।

पहला—अच्छा—इसे ले चलो, दो चार दिन वर्तन मंजवायेंगे। आराम करते-करते मोटा हो गया है।

दूसरा—तुमने इसे छोड़ क्यों दिया?

हलधर—इसने बचन दिया है कि अब सूद न लूंगा।

पहला—क्यों बच्चा, गुरूको सीधा समझकर झांसा दे दिया।

हलधर—बक बक मत करो। इन्हें नावपर बैठाकर डेरेपर ले चलो। यह बिचारे सूद ब्याज जो कुछ लेते हैं अपने भाईके हुकुमसे लेते हैं। आज उसीकी खबर लेने का विचार है।

(सब कंचनको सहारा देकर नावपर बैठा देते हैं और
गाते हुए नाव चलाते हैं।)

नारायणका नाम सदा मनके अंदर लाना चहिये।
मानुष तन है दुर्लभ जगमें इसका फल पाना चहिये॥
दुर्जन संग नरकका मारग उससे दूर जाना चहिये।
सतसंगतमें सदा बैठके हरिके गुण गाना चाहिये॥
धरम कमाई करके अपने हाथोंकी खाना चाहिये।
दुखी जीवको देख दया करके कुछ दिलवाना चाहिये॥