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नवा दृश्य
(स्थान—गुलाबीका मकान, समय—संध्या, चिराग जल चुके हैं,
गुलाबी संदूकसे रुपये निकाल रही है।)

गुलाबी—भाग जाग जायंगे। स्वामीजीके प्रतापसे यह सब रुपये दूने हो जायंगे। पूरे ३००) हैं। लौटूंगी तो हाथमें ६००) की थैली होगी। इतने रुपये तो बरसोंमें भी न बटोर पाती। साधु महात्माओं में बड़ी शक्ति होती है। स्वामीजीने यह यंत्र दिया है। भृगुके गलेमें बांध दूं। फ़िर देखूं यह चुड़ैल उसे कैसे अपने बसमें किये रहती है। उन्होंने तो कहा है कि वह उसकी बात भी न पूछेगा। यही तो मैं चाहती हूं। उसका मान-मर्दन हो जाय, घमंड टूट जाय।

(भृगुको बुलाती है।)

क्यों बेटा, आजकल तुम्हारी तबीयत कैसी रहती हैं। दुबले होते जाते हो।

भृगु—क्या करूं। सारे दिन बही खोले बैठे २ एक जाता हूं। ठाकुर कंचन सिंह एक बीड़े पानको भी नहीं पूछते। न कहीं