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संग्राम

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जलसे में शरीक किये जाते थे, पर मेरे एक फिकरेने हजरतका सारा रङ्ग फीका कर दिया। साहबने फौरन हुक्म दिया कि जाकर उसकी तलाशी लो और कोई सबूत दस्तगाब हो तो गिरफ्तारीका वारंट ले जाओ।

थानेदार—आपने क्या फिकरा जमाया था?

इन्सपेक्टर—अजी कुछ नहीं,महज इतना कहा था कि आज कल यहाँ सुराजकी बड़ी धूम है। ठाकुर सबलसिंह पंचायतें कायम कर रहे हैं। इतना सुनना था कि साहबका चेहरा सुर्ख हो गया। बोले—दगाबाज आदमी है। मिलकर वार करना चाहता है, फौरन उसके खिलाफ सबूत पैदा करो। इसके कब्ल मैंने कहा था, हजूर यह बड़ा जिनाकार आदमी है, अपने एक असामीकी औरतको निकाल लाया है। इसपर सिर्फ मुसकिराये, तोवरोंपर जरा भी मैल नहीं आई। तब मैंने यह चाल चली। यह लो गांवके मुखिये आ गये। जरा रोब जमा दूँ।

(मँगरू, हरदास फत्तू आदिका प्रवेश। सलोनी भी पीछे
पीछे पाती है और अलग हो जाती है)

इन्सपेक्टर—आइये शेखजी, कहिये खैरियत तो है?

फत्तू—(मनमें)सबल सिंहके नेक और दयावान होनेमें संदेह नहीं। कभी हमारे ऊपर सख्ती नहीं की! हमेशा रिआयत ही करते रहे, पर आंखका लगना बुरा होता है। पुलिसवाले न जाने उन्हें