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चौथा अङ्क

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हरदास—हजुर, वह तो खुल्लमखुल्ला कहते थे कि किसीको बेगार मत दो, चाहे बादशाह ही क्यों न हो। अगर कोई जबरदस्ती करे तो अपना और उसका खून एक कर दो।

इन्सपेक्टर—ठीक। शराब-गांजेकी दूकान कैसे बन्द हुई?

हरदास—हजूर, बन्द न होतो तो क्या करती, कोई वहां खड़ा नहीं होने पाता था। टाकुर साहबने हुकुम दे दिया था कि जिसे वहां खड़े, बैठे, या खरीदते पाओ उसके मुंहमें कालिख लगाकर सिरपर सौ जूते लगाओ।

इन्स०—बहुत अच्छा। अंगूठेका निशान कर दो। हम तुमसे बहुत खुश हुए।

(सलोनी गाती है।)

"सैयां भये कोतवाल, अब डर काहेका।"

इन्स०—यह पगली क्या गा रही है। अरे पगली इधर था।

सलोनी—(सामने आकर)

सैयां भये कोतवाल अब डर काहेका।

इन्स०—दारोगाजी, इसका बयान भी लिख लीजिये।

सलोनी—हां लिख लो। ठाकुर सबल सिंह मेरी बहूको घरसे भगा ले गये और पोतेको जेहल भेजवा दिया।

इन्स०—यह फजूल बातें मैं नहीं पूछता। बता यहां उन्होंने पंचायत खोली है न?