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संग्राम

२०६

सलोनी—यह फजूल बातें मैं क्या जानूं! मुझे पञ्चायतसे क्या लेना-देना है। जहाँ चार आदमी रहते हैं वहां पंचाइत रहती ही है। सनातनसे चली आती है, कोई नई बात है! इन बातोंसे पुलिससे क्या मतलब! तुम्हें तो देखना चाहिये सरकारके गजमें भले आदमियों की आबरू रहती है कि लुटती है। सो तो नहीं पंचाइत और बेगारका रोना ले बैठे। बेगार बन्द करने को सभी कहते हैं। गांवके लोगोंको आपही अखरता है। सबल सिंहने यह कह दिया तो क्या अंधेर हो गया। शराब, ताड़ी, गांजा, भांग पीनेको सभी मना करते हैं। पुरान, भागवत, साधु, सन्त सभी इसको निखिद्ध कहते हैं। सबल सिंहने यहा तो क्या नई बात कही। जो तुम्हारा काम है वह करो, उटपटांग बातों में क्यों पड़ते हो?

इन्स०—बुढ़िया शैतानकी खाला मालूम होती है।

थानेदार—तो इन गवाहोंको अब जाने दूं?

इन्स०—जी नहीं अभी (Rehersal) तो बाकी है। देखो जी तुमने मेरे रूबरू जो बयान दिया है वही तुम्हें बड़े साहबके इजलासपर देना होगा। ऐसा न हो, कोई कुछ कहे कोई कुछ। मुकदमा भी बिगड़ जाय और तुम लोग भी गलतबयानीके इज- लाममें घर लिये जाओ। दारोगाजी शुरू कीजिये। तुम लोग सब साथ-साथ वही बातें कहो जो दारोगाजी की जवानसे निकालें।

दारोगा—ठाकुर सबल सिंह कहते थे कि सरकारी अदालतों-