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चौथा अङ्क

२०९

दारोगा—एक पांच सेर घी भी लेते चलो।

सिपाही—अभी लीजिये सरकार।

(दारोगा और इन्सपेक्टरका प्रस्थान)

सलोनी गाती है—सैयां भये कोतवाल अब डर काहेका।
अब तो मैं पहनूं अतलसका लहँगा।
और चवाऊं पान।
द्वारे बैठ नजारा मारूं॥
सैयां भये कोतवाल अब डर काहेका।

फत्तू—काकी गाती ही रहेगी?

सलोनी—जा तुझसे नहीं बोलती। तू भी डर गया।

फत्तू—काकी इन सभोंसे कौन लड़ता। इजलासपर जाकर जो सच्ची बात है वह कह दूंगा।

मंगरू—पुलिसके सामने जमींदार कोई चीज नहीं।

हरदास—पुलिस के सामने सरकार कोई चीज नहीं।

सलोनी—सच्चाई के सामने जमींदार,सरकार कोई चीज नहीं।

मंगरू—सच बोलनेमें निबाह नहीं है।

हरदास—सच्चे की गर्दन सभी जगह मारी जाती है।

सलोनी—अपना धर्म तो नहीं बिगड़ता। तुम सब कायर हो। तुम्हारा मुंह देखना पाप है। मेरे सामनेसे हट जाओ।

(प्रस्थान)

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