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संग्राम

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मुझे देखकर उनकी आंखें भर गई थीं। मुझे प्यार करके कहा था 'ईश्वर तुम्हें चिरञ्जीवि करें।' इस तरह तो कभी आशीष नहीं देते थे।

(सबल रो पड़ते हैं और वहाँसे उठकर बाहर बरामदेमें चले जाते
हैं, अचल कंचन सिहके कमरेकी ओर जाता है।)

सबल—(मनमें) अब पछतानेसे क्या फायदा। जो कुछ होना था हो चुका। मालूम हो गया कि कामके आवेगमें बुद्धि, विद्या, विवेक सब साथ छोड़ देते हैं। यही भावी थी, यही होनहार था, यही विधाताकी इच्छा थी। राजेश्वरी, तुझे ईश्वरने क्यों इतनी रूप गुण-शीला बनाया? पहले पहल जब मैंने तुझसे बात की थी, तूने मेरा तिरस्कार क्यों न किया, मुझे कटु शब्द क्यों न सुनाये? मुझे कुत्ते की भांति दुत्कार क्यों न दिया? मैं अपनेको बड़ा सत्यवादी समझा करता था। पर पहले ही झोंकेमें उखड़ गया, जड़से उखड़ गया। मुलम्मेको मैं असली रंग समझ रहा था। पहली आंचमें मुलम्मा उड़ गया। अपनी जान बचाने के लिये मैंने कितनी घोर धूर्ततासे काम लिया। मेरी लज्जा, मेरा आत्माभिमान, सबकी क्षति हो गई! ईश्वर करे हलधर अपना वार न कर सका हो और मैं कञ्चनको जीता जागता आते देखूँ। मैं राजेश्वरीसे सदैवके लिये नाता तोड़ लूंगा। उसका मुंहतक न देखूंगा। दिलपर जो