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चौथा अङ्क

२१३

कुछ बीतेगी झेल लूंगा।

(अधीर होकर बरामदेमें निकल आते हैं और रास्ते की

ओर टकटकी लगाकर देखते हैं।

ज्ञानीका प्रवेश)

ज्ञानी—अभी बाबूजी नहीं आये। ११ बज गये। भोजन ठण्ढा हो रहा है। कुछ कह नहीं गये, कबतक आयेंगे?

सबल—(कमरे में आकर) मुझसे तो कुछ नहीं कहा।

ज्ञानी—तो आप चलकर भोजन कर लीजिये।

सबल—उन्हें भी आ जाने दो। तबतक तुम लोग भोजन करो।

ज्ञानी—हरज ही क्या है आप चलकर खा लें। उनका भोजन अलग रखवा दूंगी। दोपहर तो हुआ।

सबल—(मनमें) आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ कि मैंने घरपर अकेले भोजन किया हो। ऐसे भोजन करनेपर धिक्कार है। भाईका वध कराके मैं भोजन करने जाऊं और स्वादिष्ट पदार्थों का आनन्द उठाऊं। ऐसे भोजन करनेपर लानत है। (प्रगट) अकेले मुझसे भोजन न किया जायगा।

ज्ञानी—तो किसीको गंगाजी भेज दो। पता लगाये कि क्या बात है। कहां चले गये। मुझे तो याद नहीं आता कि उन्होंने कभी इतनी देर लगाई हो। जरा जाकर उनके कमरेमें