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चौथा अङ्क

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कमरेमें जाते हुए न जाने क्यों भय लगता है। ऐसा मालूम होता है कि वह कहीं छिपे बैठे हैं और दिखाई नहीं देते। उनकी छाया कमरेमें छिपी हुई जान पड़ती है।

सबल—(मनमें) इसे देखकर चित्त कातर हो रहा है। इसे फूलते-फलते देखना मेरे जीवन की सबसे बड़ी लालसा थी। कैसा चतुर, सुशील, हंसमुख लड़का है। चेहरेसे प्रतिभा टपकी पड़ती है। मनमें क्या क्या इरादे थे। इसे जर्मनी भेजना चाहता था। संसारयात्रा कराके इसकी शिक्षाको समाप्त करना चाहता था। इसकी शक्तियोंका पूरा विकास करना चाहता था पर सारी आशाएं धूलमें मिल गईं (अचलको गोदमें लेकर) बेटा, तुम जाकर भोजन कर लो मैं तुम्हारे चचाजीको देखने जाता हूँ।

अचल—आप लोग आ जायंगे तो साथही मैं भी खाऊंगा। अभी भूख नहीं है।

सबल—और जो मैं शामतक न आऊं?

अचल—आधी राततक आपकी राह देखकर तब खा लूंगा। मगर आप ऐसा प्रश्न क्यों करते हैं?

सबल—कुछ नहीं योंही। अच्छा बताओ, मैं आज मर जाऊं तो तुम क्या करोगे?

ज्ञानी—कैसा अशगुन मुंहसे निकालते हो।