संग्राम
२१८
अचल—(सबलसिंहकी गर्दनमें हाथ डालकर) आप तो अभी जवान हैं, स्वस्थ हैं, ऐसी बातें क्यों सोचते हैं?
सबल—कुछ नहीं, तुम्हारी परीक्षा करना चाहता हूँ।
अचल—(सबलकी गोदमें सिर रखकर) नहीं कोई और ही कारण है। (रोकर) बाबूजी मुझसे छिपाइये न, बतलाइये आप क्यों इतने उदास हैं, अम्मां क्यों रो रही हैं? मुझे भय लग रहा है। जिधर देखता हूँ उधर ही बेरौनकी सी मालूम होती है, जैसे पिंजरेमेंसे चिड़िया उड़ गई हो।
घुस आते हैं, और थानेदार तथा इन्सपेक्टर और सुपरिन्टेन्डेन्ट
घोड़ोंसे उतरकर बरामदेमें खड़े हो जाते
हैं, ज्ञानी भीतर चली जाती है, अचल
इन्सपेक्टर—ठाकुर साहब,आपकी खानातलाशी होगी। यह वारएट है।
सबल—शौकसे लीजिये।
सुपरिण्टेण्डेण्ट—हम तुम्हारा रियासत छीन लेगा। हम तुमको रियासत दिया है, तब तुम इतना बड़ा आदमी बना है और मोटरमें बैठा घूमता है। तुम हमारा बनाया हुआ है। हम तुमको अपने काम के लिये रियासत दिया है और तुम सरकारसे