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संग्राम

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चेतन—ईश्वरकी इच्छा है कि मैं तुम्हारी जमानत करूं।

सुप०—वेल इन्सपेक्टर, आपकी क्या राय है? जमानत लेनी चाहिये या नहीं?

इन्स०—हजूर स्वामीजी बड़े मोतबर, सरकारके बड़े खैरख्वाह हैं। इनकी जमानत मंजूर कर लेने में कोई हर्ज नहीं है।

सुप०—हम पांच हजारसे कम न लेगा।

चेतन—मैं स्वीकार करता हूं।

सबल—स्वामीजी! मेरे सिद्धान्त भङ्ग हो रहे हैं।

चेतन—ईश्वरकी यही इच्छा है।

(पुलिसके कर्मचारियोंका प्रस्थान। ज्ञानी अन्दरसे निकलकर
चेतनदासके पैरोंपर गिर पड़ती हैं)

चेतन—माई तेरा कल्याण हो।

ज्ञानी—आपने आज मेरा उद्धार कर दिया।

चेतन—सब कुछ ईश्वर करता है।

(प्रस्थान)