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तृतीय दृश्य


(स्थान—स्वामी चेतनदासकी कुटी, समय—संध्या)

चेतनदास—(मनमें) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिसवाले अधिक से अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिह ऐसे काँटोंसे डरनेवाला पुरुष नहीं है। पहले मैंने समझा था उस चालसे यहां उसका खूब अपमान होगा। पर यह अनुमान ठीक न निकला। दो घण्टे पहले शहरमें सबलकी जितनी प्रतिष्ठा थी, अब सससे सतगुनी है। अधिकारियोंकी दृष्टिमें चाहे वह गिर गया हो पर नगरनिवासियोंकी दृष्टि में अब वह देव-तुल्य है। यह काम हलधर ही पूरा करेगा। मुझे उसके पीछेका रास्ता साफ़ करना चाहिये।

(ज्ञानीका प्रवेश)

ज्ञानी—महाराज आप उस समय इतनी जल्द चले आये कि मुझे आपसे कुछ कहने का अवसर ही न मिला। आप यदि सहाय न होते तो आज मैं कहींकी न रहती! पुलिसवाले किसी