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संग्राम

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दूसरे व्यक्तिकी जमानत न लेते। आपके योगबलने उन्हें परास्त कर दिया।

चेतन—माई, यह सब ईश्वरकी महिमा है। मैं तो केवल उसका तुच्छ सेवक हूँ।

ज्ञानी—आपके सम्मुख इस समय मैं बहुत निर्लज्ज बनकर आई हूं। मैं अपराधिनी हूँ, मेरा अपराध क्षमा कीजिये। आप ने मेरे पतिदेवके विषयमें जो बातें कही थीं वह एक-एक अक्षर सच निकलीं। मैंने आपपर अविश्वास किया। मुझसे यह घोर अपराध हुआ। मैं अपने पतिको देव-तुल्य समझती थी। मुझे अनुमान हुआ कि आपको किसीने भ्रममें डाल दिया है। मैं नहीं जानती थी कि आप अन्तर्यामी हैं। मेरा अपराध क्षमा कीजिये।

चेतन—तुझे मालूम नहीं है, आज तेरे पतिने कैसा पैशाचिक काम कर डाला है? मुझे इसके पहले तुझसे कहनेका अवसर नहीं प्राप्त हुआ।

ज्ञानी—नहीं महाराज, मुझे मालूम है। उन्होंने स्वयं मुझसे सारा वृत्तान्त कह सुनाया। भगवन, यदि मैंने पहले ही आपकी चेतावनीपर ध्यान दिया होता तो आज इस हत्याकाण्डकी नौबत न आती। यह सब मेरी अश्रद्धाका दुष्परिणाम है। मैंने आप जैसे महात्मा पुरुषका अविश्वास किया, उसीका यह दण्ड