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संग्राम

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जो कुछ होना था हो चुका। उसका शोक जीवन पर्य्यन्त रहेगा। अब कुलकी रक्षा कीजिये। मेरी आपसे यही याचना है।

चेतनदास—पापका दण्ड ईश्वरीय नियम है। इसे कौन भङ्ग करेगा।

ज्ञानी—योगीजन चाहें तो ईश्वरीय नियमोंको भी झुका सकते हैं।

चेतन—इसका तुझे विश्वास है?

ज्ञानी—हां महाराज मुझे पूरा विश्वास है।

चेतन—श्रद्धा है?

ज्ञानी—हां महाराज पूरी श्रद्धा है।

चेतन—भक्तको अपने गुरुके सामने अपना तन, मन, धन, सभी समर्पण करना पड़ता है। यही अर्थ, धर्म, काम और मोक्षके प्राप्त करनेका एकमात्र साधन है। भक्त गुरूकी बातोंपर, उपदेशोंपर, व्यवहारोंपर कोई शंका नहीं करता। वह अपने गुरूको ईश्वर-तुल्य समझता है। जैसे कोई रोगी अपनेको वैद्यके हाथोंमें छोड़ देता है, उसी भांति भक्त भी अपने शरीरको अपनी बुद्धिको और आत्माको गुरूके हाथों में छोड़ देता है। तुम अपना कल्याण चाहती है तो तुझे भक्तोंके धर्मका पालन करना पड़ेगा।