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संग्राम

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शान्ति मिल रही है।

चेतन—मैं तेरा सर्वस्व हूं। मैं तेरी सम्पत्ति हूं, तेरी प्रतिष्ठा हूँ, तेरा पति हूँ, तेरा पुत्र हूँ, तेरी माता हूँ, तेरा पिता हूँ, तेरा स्वामी हूं, तेरा सेवक हूँ, तेरा दान हूँ, तेरा ब्रत हूँ। हाँ, मैं तेरा स्वामी हूँ और तेरा ईश्वर हूँ। तू राधिका है मैं तेरा कन्हैया हूँ, तू सती है मैं तेरा शिव हूँ, तू पत्नी है, मैं तेरा पति हूँ, तू प्रकृति है, मैं पुरुष हूं, तू जीव है, मैं आत्मा हूं, तू स्वर है, मैं उसका लालित्य हूँ, तू पुष्प है, मैं उसका सुगन्ध हूँ।

ज्ञानी—भगवान, मैं आपके चरणों की रज हूँ। आपकी सुधा वर्षासे मेरी आत्मा तृप्त हो गई।

चेतन—तेरा पति तेरा शत्रु है, जो तुझे अपने कुकृत्योंका भागी बनाकर तेरी आत्माका सर्वनाश कर रहा है।

ज्ञानी—(मनमें) वास्तवमें उनके पीछे मेरी आत्मा कलुषित हो रही है। उनके लिये मैं अपनी मुक्ति क्यो बिगाडूं। अब उन्होंने अधर्म पथपर पग रखा है। मैं उनकी सहगामिनी क्यों बनूं? (प्रगट) स्वामीजी, अब मैं आपकी ही शरण आई हूँ, मुझे उबारिये।

चेतन—प्रिये, हम और तुम एक हैं, कोई चिन्ता मत करो। ईश्वरने तुम्हें मंझधारमें डूबनेसे बचा लिया। वह देखो सामने ताकपर बोतल है। उसमें महाप्रसाद रखा हुआ है। उसे उतार