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चौथा अङ्क

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(ज्ञानीके गले में बांहें डालकर आलिङ्गन करना चाहता है,

ज्ञानी झिझक कर पीछे हट जाती है।)

चेतन—प्रिये, यह भक्ति मार्गकी तीसरी परीक्षा है!

(ज्ञानी अलग खड़ी होकर रोती है)

चेतन—प्रिये..................

ज्ञानी—(उच्च स्वरसे) कोचवान गाड़़ी लावो।

चेतन—इतनी अधीर क्यों हो रही हो? क्या मोक्षपदके निकट पहुँचकर फिर उसी मायावी संसारमें लिप्त होना चाहती हो? यह तुम्हारे लिये कल्याणकारी न होगा।

ज्ञानी—मुझे मोक्षपद प्राप्त हो या न हो, यह ज्ञान अवश्य प्राप्त हो गया कि तुम धूर्त, कुटिल, भ्रष्ट, दुष्ट, पापी हो। तुम्हारे इस भेषका अपमान नहीं करना चाहती, पर यह समझ रखो कि तुम सरला स्त्रियोंको इस भांति दगा देकर, अपनी आत्माको नर्ककी ओर ले जा रहे हो। तुमने मेरे शरीरको अपने कलुषित हाथों से स्पर्श करके सदाके लिये विकृत कर दिया। तुम्हारे मनोविकारोंके सम्पर्कसे मेरी आत्मा सदाके लिये दूषित हो गई। तुमने मेरे व्रतकी हत्या कर डाली। अब मैं अपनेहीको अपना मुंह नहीं दिखा सकती। सतीत्व जैसी अमूल्य वस्तु खोकर मुझे ज्ञात हुआ कि मानवचरित्रका कितना पतन हो सकता है। अगर तुम्हारे हृदयमें