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संग्राम

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मनुष्यत्वका कुछ भी अंश शेष है तो मैं उसीको सम्बोधित कर- के विनय करती हूँ कि अब अपनी आत्मापर दया करो और इस दुष्टाचरणको त्यागकर सद्वृत्तियोंका आवाहन करो।

(कुटीसे बाहर निकल कर गाड़ी में बैठ जाती है)

कोचवान—किधर ले चलूं?

ज्ञानी—सीधे घर चलो।