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चौथा अङ्क

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एक तालेमें दो कुञ्जियाँ साथ-साथ चली जायं, एक म्यानमें साथ दो तलवारें रहें, एक कुल्हाड़ीमें साथ दो वेंट लगे, पर एक स्त्री के दो चाहनेवाले नहीं रह सकते, असम्भव है।

राजे०—एक पुरुषको चाहनेवाली तो कई स्त्रियाँ होती हैं।

सबल—यह उनके अपङ्ग होनेके कारण हैं। एक ही भाव दोनोंके मनमें उठते हैं। पुरुष शक्तिशाली है, वह अपने क्रोधको व्यक्त कर सकता है। स्त्री मनमें ऐंठकर रह जाती है।

राजे०—क्या आप समझते थे कि मैं कंचनसिंहको मुँह लगा रही हूँ। उन्हें केवल यहाँ बैठे देखकर आपको इतना उबलना न चाहिये था।

सबल—तुम्हारे मुँहसे यह तिरस्कार कुछ शोभा नहीं देता। तुमने अगर सिरेसे ही उसे यहां न घुसने दिया होता तो आज यह नौबत न आती। तुम अपनेको इस इलजामसे मुक्त नहीं कर सकती।

राजे०—एक तो आपने मुझपर सन्देह करके मेरा अपमान किया, अब आप इस हत्याका भार भी मुझपर रखना चाहते हैं। मैंने आपके साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया था कि आप इतना अविश्वास करते।

सबल—राजेश्वरी, इन बातोंसे दिल न जलाओ। मैं दुखी हूं,मुझे तसकीन दो,मैं घायल हूँ, मेरे घावपर मरहम रखो। मैंने