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संग्राम

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किसीसे बताना भी नहीं चाहता कि मैं कहां जा रहा हूं। मैं तुम्हारे सिवा और सारे संसारके लिये मर जाना चाहता हूं।

(गाता है।)

किसीको देके दिल कोई नवा संजे फुगां क्यों हो।
न हो जब दिल ही सीनेमें तो फिर मुंहमें ज़बां क्यों हो।
वफ़ा कैसी, कहांका इश्क़, जब सिर फोड़ना ठहरा,
तो फिर ऐ संग दिल तेरा ही संगे आस्तां क्यों हो।
क़फ़समें मुझसे रूदादे चमन कहते न डर हरदम,
गिरी है जिस पै कल बिजली वह मेरा आशियां क्यों हो।
यह फ़ितना आदमीकी खानः वीरानीको क्या कम है,
हुए तुम दोस्त जिसके उसका दुश्मन आसमां क्यों हो।
कहा तुमने कि क्यों हो ग़ैरके मिलनेमें रुसवाई,
वजा कहते हो, सच कहते हो, फिर कहियो कि हां क्यों हो।

राजे०—(मनमें) यहां हूं तो कभी न कभी नसीब जागेंगे ही। मालूम नही वह (हलधर) आजकल कहां हैं, कैसे हैं, क्या करते हैं, मुझे अपने मनमें क्या समझ रहे हैं। कुछ भी हो जब मैं जाकर सारी राम कहानी सुनाऊंगी तो उन्हें मेरे निरपराध होनेका विश्वास हो जायगा। इनके साथ जाना अपना सर्वनाश कर लेना है। मैं इनकी रक्षा करना चाहती हूँ, पर अपना सत खोकर नहीं, इनको बचाना चाहती हूँ, पर अपनेको डुबाकर