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चौथा अङ्क

२५१

हलधर—भाईपर जान देते हैं।

रंगी—तुम भी तो हकनाहककी जिद्द कर रहे हो। २० हजार नगद मिल रहा है। दस्तावेज भी इतनेकी ही होगी। इतना धन तो ऐसा ही भाग जागे तो हाथ लग सकता है। आधा तुम ले लो। आधा हम लोगोंको दे दो। २० हजार में तो ऐसी-ऐसी बीस औरतें मिल जायंगी।

हलधर—कैसी बेगैरतोंकी सी बात करते हो। स्त्री चाहे सुन्दर हो, चाहे कुरूप, कुल मरजादकी देवी है। मरजाद रुपयोंपर नहीं बिकती।

रंगी—ऐसा ही है तो उसीको क्यों नहीं मार डालते। न रहे बांस न बजे बांसुरी।

हलधर—उसे क्या मारूं। स्त्रीपर हाथ उठानेमें क्या जाकांमरदी है।

रङ्गी—तो क्या उसे फिर रखोगे?

हलधर—मुझे क्या तुमने ऐसा बेगैरत समझ लिया है। घरमें रखनेकी बात ही क्या,अब उसका मुंह भी नहीं देख सकता। वह कुलटा है, हरजाई है। मैंने पता लगा लिया है। वह अपने आप घरसे निकल खड़ी हुई। मैंने कबका उसे दिलसे निकाल दिया। अब उसकी याद भी नहीं करता। उसकी याद आते ही शरीरमें ज्वाला उठने लगती है। अगर उसे मारकर कलेजा