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संग्राम

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ठण्डा हो सकता तो इतने दिनों चिंता और क्रोधकी आगमें जलता ही क्यों।

रंगी—मैं तो रुपयोंका इतना बड़ा ढेर कभी हाथसे न जाने देता। मान-मर्य्याद सब ढकोसला है। दुनियानें ऐसी बातें आये दिन होती रहती हैं। लोग औरतको घरसे निकाल देते हैं। बस।

हलधर—क्या कायरोंकीसी बातें करते हो। रामचन्द्रने सीताजीके लिये लङ्काका राज बिधन्स कर दिया। द्रोपदीकी मानहानि करने के लिये पांडवोंने कौरवों का निर्बन्स कर दिया। जिस आदमीके दिलमें इतना अपमान होनेपर भी क्रोध न आये, वह मरने-मारनेपर तैयार न हो जाय,उसका खून न खौलने लगे, वह मर्द नहीं हिजड़ा है। हमारी इतनी दुर्गति क्यों हो रही है? जिसे देखो वही हमें चार गालियां सुनाता है, ठोकर मारता है। क्या अहलकार, क्या जमींदार सभी कुत्तोंसे नीच समझते हैं। इसका कारन यही है कि हम बेहया हो गये हैं। अपनी चमड़ीको प्यार करने लगे हैं। हममें भी गैरत होती, अपने मान-अपमानका विचार होता तो मजाल थी कि कोई हमें तिरछी आँखोंसे देख सकता। दूसरे देशोंमें सुनते हैं गालियोपर लोग मरने-मारनेको तैयार हो जाते हैं। वहां कोई किसीको गाली नहीं दे सकता। किसी देवताका अपमान कर