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चौथा अङ्क

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उसकी घातिका हो रही हूं। हा अर्थलोलुपता! तूने मेरा सर्वनाश कर दिया। मैंने सन्तान-लालसाके पीछे कुलमें कलङ्क लगा दिया, कुलको धूलमें मिला दिया। पूर्व जन्ममें न जाने मैंने कौनसा पाप किया था। चेतनदास, तुमने मेरी सोनेकी लङ्का दहन कर दी। मैंने तुम्हें देवता समझकर तुम्हारी आराधना की थी। तुम राक्षस निकले। जिस रूखारको मैंने बाग समझा था वह बीहड़ बन निकला। मैने कमलका फूल तोड़नेके लिये पैर बढ़ाये थे दलदलमें फंस गई, जहाँसे अब निकलना दुस्तर है। पतिदेवने चलते समय मेज़परसे कुछ उठाया था। न जाने कौन सी चीज़ थी। कालीघटा छाई हुई है। हाथको हाथ नहीं सूझता। वह कहां गये। भगवन्, कहां जाऊँ? किससे पूछूं, क्या करूँ? कैसे उनकी प्राण रक्षा करूँ? हो न हो राजेश्वरीके पास गये। वहीं इस लीलाका अन्त होगा। उसके प्रेममें वह विह्वल हो रहे हैं। अभी उनकी आशा वहां लगी हुई है। मृगतृष्णा है। वह नीच जातिकी स्त्री है पर सती है। अकेले इस अन्धेरी रातमें वहां कैसे पहुँचूंगी। कुछ ही हो यहाँ नहीं रहा जाता। बग्घीपर गई थी। रास्ता कुछ-कुछ याद है। ईश्वर के भरोसेपर चलती हूँ। या तो वहां पहुंच ही जाऊँगी या इसी टोहमें प्राण दे दूँगी। एक बार मुझे उनके दर्शन हो जाते तो जीवन सफल हो जाता। मैं उनके चरणोंपर प्राण त्याग देती।

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