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संग्राम

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ङ्कित करती रहेगी। बिरादरीमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं नहीं रहा। सब लोग मुझे बिरादरीसे निकाल देंगे। हुक्का-पानी बन्द कर देंगे। हेठी और बदनामी होगी वह घाटेमें। यह तो यहां महलमें रानी बनी बैठी अपने कुकर्मका आनन्द उठाया करे और मैं इसके कारण बदनामी उठाऊं? अबतक उसको मारनेका जी न चाहता था। औरतपर हाथ उठाना नीचताका काम समझता था। पर अब वह नीचता करनी पड़ेगी। उसके किये बिना खेल बिगड़ जायगा।

(चेतनदासका प्रवेश)

चेतनदास—यहां कौन बैठा हुआ है?

हलधर—मैं हूं हलधर।

चेतन—खूब मिले। बताओ सबलसिंहका क्या हाल हुआ? वध कर डाला?

हलधर—नहीं, उन्हें मरनेसे बचा लिया।

चेतन—(खुश होकर) बहुत अच्छा किया। मुझे यह सुनकर बड़ी खुशी हुई। सबलसिंह कहां हैं?

हलधर—मेरे घर।

चेतन—ज्ञानी जानती है कि वह जिन्दा हैं?

हलधर—नहीं, उसे अबतक इसकी खबर नहीं मिली।

चेतन—तो उसे जल्द खबर दो नहीं तो उससे भेंट न होगी।