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संग्राम

१६

भूत सवार हुआ है। क्या यह मुझसे उस समयके संयमका बदला लिया जा रहा है, अब मेरी परीक्षा की जा रही है!

(ज्ञानी का प्रवेश)

ज्ञानी—तुम्हारी यह सब किताबें कहीं छुपा दूँ। जब देखो तब एक न एक पोथा खोले बैठे रहते हो। दर्शनतक नहीं होते।

सबल—तुम्हारा अपराधी मैं हूँ, जो दण्ड चाहे दो। यह बिचारी पुस्तकें बेक़सूर हैं।

ज्ञानी—गुलबिया आज बग़ीचेकी तरफ़ गई थी। कहती थी, आज वहां कोई महात्मा आये हैं। सैकड़ों आदमी उनके दर्शनोंको जा रहे हैं। मेरी भी इच्छा हो रही है कि जाकर दर्शन कर आऊँ।

सबल—पहले मैं जाकर ज़रा उनके रंग-ढंग देख लूँ तो फिर तुम जाना। गेरुए कपड़े पहनकर महात्मा कहलानेवाले बहुत हैं।

ज्ञानी—तुम तो आकर यही कह दोगे कि वह बना हुआ है, पाखण्डी है, धूर्त्त है, उसके पास न जाना। तुम्हें न जाने क्यों महात्माओंसे चिढ़ है।

सबल—इसीलिये चिढ़ है कि मुझे कोई सच्चा साधु नहीं दिखाई देता।

ज्ञानी—इनकी मैंने बड़ी प्रशंसा सुनी है। गुलाबी कहती