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संग्राम

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इन्स०—आपका क्या एतबार, इसी वक्तकी गाड़ीसे हरद्वारकी राह लें। पुलिस के मुआमिले नकद होते हैं।

एक सिपाही—लाओ नगद नारायन निकालो। पुलुससे ईफेरफार न चल पइ है। तुमरे ऐसे साधुनका इहाँ रोज चराइत है।

इन्स्पेक्टर—आप हैं किस गुमानमें। यह चालें अपने भोले भाले चेले चापड़ोंके लिये रहने दीजिये जिन्हें आप नजात देते हैं। हमारी नजातके लिये आपके रुपये काफी हैं। उससे हम फरिश्तोंको भी राहपर लगा लेंगे। दारोगाजी, वह शेर आपको याद है।

दारोगाजी—हां, ऐ जर तू खुदा नई, बलेकिन बखुदा
हाशा रब्बी व फाज़िउल हाजाती।

इन्सपेक्टर—मतलब यह है कि रुपया खुदा नहीं है लेकिन खुदाके दो सबसे बड़े औसाफ उसमें मौजूद हैं। परवरिश करना और इन्सानकी जरूरतोंको रफ़ा करना।

चेतनदास—कल किसी वक्त़ आइयेगा।

इन्स्पेक्टर—(रास्तेमें खड़े होकर) कल आनेवालेपर लानत है। एक भले आदमीकी इज्ज़त खाकमें मिलवाकर अब आप यों झांसा देना चाहते हैं। कहीं साहब बहादुर ताड़ जाते तो नौकरीके लाले पड़ जाते।