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संग्राम

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थानेदार—नहीं महाराज, खुदाके लिये रहम कीजिये। बाल बच्चे दाने बगैर मर जायंगे। अब कभी किसी को न सताऊँगा। अगर एक कौड़ी भी रिश्वत लूं तो मेरे अस्लमें फर्क समझियेगा। कभी हरामके मालके करीब न जाऊंगा।

चेतन—अच्छा तुम इस इन्स्पेक्टरके सिरपर पचास जूते गिनकर लगावो तो छोड़ दूं।

थाने०—महाराज, वह मेरे अफ़सर हैं। मैं उनकी शानमें ऐसी बेअदबी क्योंकर कर सकता हूँ। रिपोर्ट कर दें तो बर्खास्त हो जाऊं।

चेतन—तो फिर आंखें बन्द कर लो और खुदाको याद करो, घोड़ा गिरता है।

थाने—हजूर जरा ठहर जायं, हुक्मकी तामील करता हूं। कितने जूते लगाऊं?

चेतन—५० से कम न ज्यादा।

थाने०—इतने जूते पड़ेंगे तो चांद खुल जायगी। नाल नगी हुई है।

चेतन—कोई परवा नहीं। उतार लो जूते।

(थानेदार जूते पैरसे निकाल कर इन्स्पेक्टरके सिरपर लगाता है,
इन्स्पेक्टर चौंककर उठ बैठता है, दूसरा जूता फिर पड़ता है)

इन्स्पेक्टर-शैतान कहींका, मलऊन।