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पांचवां अङ्क

२७५

थाने०—मैं क्या करूं? बैठ जाइये ५० लगा लूं। इतनी इनायत कीजिये! जान तो बचे।

(इन्स्पेक्टर उठकर थानेदारसे हाथापाई करने लगता है, दोनों
एक दूसरे को गालियां देते हैं, दांत काटते हैं)

चेतनदास—जो जीतेगा उसे इनाम दूंगा। मेरी कुटीपर आना। खूब लड़ो, देखें कौन बाजी ले जाता है।

(प्रस्थान)

इन्स०—तुम्हारी इतनी मजाल! बर्खास्त न करा दिया तो कहना।

थाने०—क्या करता, सीनेपर पिस्तौलका निशान लगाये तो खड़ा था।

इन्स०—यहां कोई सिपाही तो नहीं है?

थाने०—वह दोनों तो पहले ही भाग गये।

इन्स०—अच्छा, खैरियत चाहो तो चुपकेसे बैठ जाओ और मुझे गिनकर सौ जूते लगाने दो, वरना कहे देता हूँ कि सुबहको तुम थाने में न रहोगे। पगड़ी उतार लो।

थाने०—मैंने तो आपकी पगड़ी नहीं उतारी थी।

इन्स०—उस बदमाश साधुको यह सूझी ही नहीं।

थाने०—आप तो दूसरे हाथपर उठ खड़े हुए थे।

इन्स०—खबरदार, जो यह कलमा फिर मुँहसे निकला।